स्वामी करपात्री जी महाराज की प्रेरणा से इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सर्वप्रथम संवत 1998 में काशी में धर्म संघ महाविद्यालय की स्थापना हुई । इसमें वेद वेदांग धर्मशास्त्र व्याकरण ज्योतिष इतिहास पुराण साहित्य आदि के पठन-पाठन की प्राचीन शैली के अनुसार व्यवस्था की गई है । इसमें सरकारी सहायता ना लेने का नियम रखा गया । यह अनुभव किया गया कि सरकार शिक्षा पद्धति द्वारा एवं प्रचार करता है और शासकों के द्वारा शिक्षा पद्धति भी बदलती रहती है । सरकारी सहायता लेने पर अपने सिद्धांत अनुसार शिक्षा देने की स्वतंत्रता न रहेगी । संवत 2000 में दिल्ली में धर्म संघ का तृतीय वार्षिक अधिवेशन तथा शत्मुखकोटिहोमात्मक महायज्ञ हुआ और दिल्ली में धर्म संघ महाविद्यालय की स्थापना हुई । उसी वर्ष कुछ लोगों के प्रयत्न से वृंदावन में भी धर्म संघ विद्यालय स्थापित हुआ ।
संवत 2001 में काशी में धर्म संघ का चतुर्थ महाधिवेशन तथा शत्मुखकोटिहोमात्मक रुद्र महायज्ञ हुआ । विचार चला कि विद्यालयों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए कोई केंद्रीय संस्था होनी चाहिए । जो सबके लिए नियम पाठ्यक्रम आदि बनाए परीक्षाओं की व्यवस्था करें, सब का निरीक्षण रखें और देश के विभिन्न भागों में ऐसे विद्यालय खोलने का प्रयत्न करें । इसकी योजना बनाने के लिए एक समिति नियुक्त हुई जिसने श्री धर्म संघ शिक्षा मंडल का विधान तैयार किया। तब से इस का कार्य बराबर चल रहा है । इसका प्रधान कार्यालय काशी में रखा गया।
संबंध विद्यालय
श्री धर्म संघ महाविद्यालय काशी - यह महाविद्यालय धर्म संघ शिक्षा मंडल का मुख्य महाविद्यालय है और शिक्षा मंडल स्थापित होने के पूर्व काल से ही यह चल रहा है वर्ष 1998 में इसकी स्थापना हुई ।
श्री धर्म संघ विद्यालय गायघाट काशी
श्री धर्म संघ महाविद्यालय दिल्ली
श्री धर्म संघ विद्यालय वृंदावन